शनिवार, 6 सितंबर 2014

मधु सिंह : जज साहब के बिछौनें देखे





हमने   बहुत   ज़माने   देखे 
थानों   में    मयखाने   देखे

गुण्डे ,चोर, उचक्कों ,रहजन 
सबके  पहुंच   ठिकानें  देखे

कहते थे ख़ुद को जो मुन्सिफ   
उनके  करम   घिनौनें   देखे 

जिश्म  जवानी  नंगेपन संग
जज साहब के  बिछौनें  देखे

क़त्ल  रात  में  सुबह छिनैती
मंत्री के   घर  तहखानें  देखे

खोल -खोल जब परतें देखी
कितनें खेल - खिलौनें  देखे

जब - जब  कत्ल  खून  होते 
खंज़र साहब के सरहाने देखे

नहीं पूछना क्या -क्या देखा 
छुरी   घोंपते   अपने    देखे

            मधु  "मुस्कान "





 

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